तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच गतिरोध

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तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच गतिरोध

GS-2: भारतीय राजव्यवस्था

(यूपीएससी/राज्य पीएससी)

23/05/2024

स्रोत: TH

न्यूज में क्यों:

आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2014 के अनुसार दो जून, 2024 को हैदराबाद पूरी तरह से तेलंगाना राज्य के अधीन हो जाएगा।

  • हालांकि, विभाजन के दस साल बाद भी आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच संपत्तियों के बंटवारे, बिजली बिल बकाया जैसे कई मुद्दे अनसुलझे हैं। 
  • आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, दोनों राज्यों के बीच आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम की अनुसूची-IX और अनुसूची- X  में सूचीबद्ध अलग-अलग संस्थानों और निगमों का विभाजन अब तक पूरा नहीं हुआ है क्योंकि कई मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाई है। इससे दोनों राज्यों के मध्य विवाद की स्थिति बनने की आशंका है

पृष्ठभूमि:

  • 2 जून, 2014 को आंध्र प्रदेश के उत्तर-पश्चिमी भाग को अलग कर 29 वां राज्य तेलंगाना बनाया गया।
  • राज्य पुनर्गठन अधिनियम (1956) ने विस्तारित आंध्र प्रदेश राज्य बनाने के लिए हैदराबाद राज्य के तेलुगु भाषी क्षेत्रों को आंध्र राज्य में मिला दिया।
  • आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम (2014) ने आंध्र प्रदेश (एपी) को दो अलग-अलग राज्यों, अर्थात् आंध्र प्रदेश (शेष) और तेलंगाना में विभाजित कर दिया।
  • अब पूर्ववर्ती संयुक्त आंध्र प्रदेश के विभाजन के 10 साल बाद, दोनों राज्यों के बीच संपत्तियों और देनदारियों का विभाजन मायावी बना हुआ है क्योंकि राज्य आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2014 के तहत प्रावधानों की अपनी व्याख्या करते हैं।

प्रमुख मुद्दे:

2014 में तेलंगाना राज्य का गठन और आंध्रप्रदेश के विभाजन के बाद कई मुद्दों पर दोनों राज्यों के बीच विवाद उत्पन्न हुए हैं। इनमें से कुछ मुख्य मुद्दे निम्नलिखित हैं:

राजधानी का मुद्दा:

  • आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद को तेलंगाना का हिस्सा बना दिया गया, लेकिन इसे दस वर्षों के लिए दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी घोषित किया गया। इस अवधि के बाद आंध्र प्रदेश को अपनी नई राजधानी बनानी थी, जिसके लिए अमरावती को चुना गया। यह प्रक्रिया अपने आप में जटिल और विवादास्पद रही है।

संसाधनों का बंटवारा:

  •  तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच जल संसाधनों, बिजली, और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का बंटवारा एक बड़ा मुद्दा रहा है। कृष्णा और गोदावरी नदियों के जल के बंटवारे पर दोनों राज्यों के बीच मतभेद रहे हैं।

वित्तीय मुद्दे:

  • विभाजन के बाद, दोनों राज्यों के बीच वित्तीय देनदारियों और संपत्तियों का बंटवारा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। इसमें सार्वजनिक कंपनियों, संस्थाओं, और सरकारी इमारतों का बंटवारा शामिल है।
  • आंध्र प्रदेश ने इस बात पर खेद व्यक्त किया है कि तेलंगाना सरकार ने शीला भिडे की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति द्वारा दी गई सिफारिशों को चुनिंदा रूप से स्वीकार कर लिया तथा अन्य को छोड़ दिया, जिसके परिणामस्वरूप परिसंपत्तियों और देनदारियों के विभाजन में देरी हो रही है।
  • समिति ने अनुसूची IX की 91 संस्थाओं में से 89 के विभाजन के संबंध में सिफारिशें की हैं।
  • आंध्र प्रदेश का तर्क है कि विभाजन की प्रक्रिया को तेज करने के लिए सिफारिशों को जल्दबाजी में स्वीकार कर लिया गया और इन संस्थानों के विभाजन को अंतिम रूप दे दिया गया।

शैक्षणिक और स्वास्थ्य सुविधाएं:

  • विभाजन के बाद शैक्षणिक और स्वास्थ्य संस्थानों का बंटवारा भी एक चुनौतीपूर्ण मुद्दा रहा है। दोनों राज्यों के छात्रों और मरीजों के हितों को ध्यान में रखते हुए यह मुद्दा संवेदनशील हो जाता है।

राजनीतिक और सांस्कृतिक मतभेद:

  • दोनों राज्यों के बीच राजनीतिक नेतृत्व और सांस्कृतिक पहचान को लेकर भी मतभेद रहे हैं, जो समय-समय पर तनाव का कारण बनते हैं।

अधिनियम में उल्लिखित 12 संस्थाएँ:

  • इस इश्यू में 245 संस्थान शामिल हैं, जिनकी कुल अचल संपत्ति का मूल्य 1.42 लाख करोड़ रुपये है।
  • अधिनियम की अनुसूची IX के अंतर्गत 91 संस्थान तथा अनुसूची X के अंतर्गत 142 संस्थान हैं ।
  • अधिनियम में उल्लेखित न की गई 12 अन्य संस्थाओं का विभाजन भी राज्यों के बीच विवाद का विषय बन गया है।

केंद्र की भूमिका:

  • गृह मंत्रालय (एमएचए) ने 2017 में ही मुख्यालय की परिसंपत्तियों के बारे में स्पष्टता दे दी थी।
  • गृह मंत्रालय ने कहा है कि एक एकल व्यापक राज्य उपक्रम (जिसमें एक ही सुविधा में मुख्यालय और परिचालन इकाइयां शामिल हैं) के मामले में, जो विशेष रूप से एक स्थानीय क्षेत्र में स्थित है, या इसका संचालन एक ही क्षेत्र में सीमित है, इसे पुनर्गठन अधिनियम की धारा 53 की उप-धारा (1) के अनुसार स्थान के आधार पर विभाजित किया जाएगा।
  • यह अधिनियम केंद्र सरकार को जरूरत पड़ने पर हस्तक्षेप करने का अधिकार देता है।

सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका:

  • सर्वोच्च न्यायालय अपने मूल अधिकार क्षेत्र में राज्यों के बीच विवादों का निर्णय करता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 131 के अनुसार, भारत सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच या भारत सरकार और किसी राज्य के बीच या दो या अधिक राज्यों के बीच किसी भी विवाद में सर्वोच्च न्यायालय को मूल अधिकारिता प्राप्त है।
  • संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत अंतर-राज्यीय परिषद से विवादों की जांच करने और सलाह देने, सभी राज्यों के लिए सामान्य विषयों पर चर्चा करने तथा बेहतर नीति समन्वय के लिए सिफारिशें करने की अपेक्षा की जाती है।

अंतर-राज्यीय विवादों के समाधान हेतु आगे की राह:

  • संविधान द्वारा अंतरराज्यीय परिषद को (अंतरराज्यीय विवादों को सुलझाने के संदर्भ में) जो जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं, उन्हें केवल कागजों में नहीं बल्कि हकीकत में पूरा करने की जरूरत है।
  • इसी तरह, प्रत्येक क्षेत्र में राज्यों की सामान्य चिंता के मामलों-सामाजिक और आर्थिक योजना, सीमा विवाद, अंतर-राज्य परिवहन आदि से संबंधित मामलों पर चर्चा करने के लिए क्षेत्रीय परिषदों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।
  • भारत विविधता में एकता का प्रतीक है। हालाँकि, इस एकता को और मजबूत करने के लिए, केंद्र और राज्य सरकारों दोनों को सहकारी संघवाद के लोकाचार को आत्मसात करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:

इन मुद्दों को सुलझाने के लिए दोनों राज्यों की सरकारें और केंद्र सरकार समय-समय पर बातचीत और समझौतों की कोशिश करती रही हैं। हालाँकि, ये विवाद जटिल और गहरे हैं, और इनके समाधान में समय और सहयोग की आवश्यकता है।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच कई अहम मुद्दों के कारण बने गतिरोध के समाधान हेतु आगे की राह पर चर्चा कीजिए।