भारत के लिए “चाबहार बंदरगाह” का महत्त्व

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भारत के लिए “चाबहार बंदरगाह” का महत्त्व

GS-2: अंतर्राष्ट्रीय संबंध

(यूपीएससी/राज्य पीएससी)

15/05/2024

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

न्यूज़ में क्यों:

हाल ही में, भारत ने सामरिक रूप से महत्वपूर्ण ईरान के चाबहार बंदरगाह को संचालित करने के लिए 10 साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं।

  • ताकि भारत इसके माध्यम से ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप में अपना आर्थिक व्यापर बढ़ा सके।
  • यह अनुबंध शाहिद-बेहिश्ती टर्मिनल के संचालन को सक्षम करने के लिए इंडियन पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) और ईरान के पोर्ट एंड मैरीटाइम ऑर्गनाइजेशन (PMO) के मध्य हुआ है।
  • चाबहार से संबंधित बुनियादी ढांचे में सुधार लाने के उद्देश्य से IPGL प्रत्यक्ष तौर पर लगभग 120 मिलियन डॉलर का निवेश करेगा जबकि भारत सरकार 250 मिलियन डॉलर के बराबर रुपये में ऋण प्रदान करेगी।

चाबहार बंदरगाह के बारे में:

  • चाबहार परियोजना अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे का एक संभावित घटक है, जिसकी कल्पना रूस, ईरान और भारत ने दक्षिण एशिया को मध्य एशिया और यूरोप से जोड़ने के लिए की गयी है।
  • हालाँकि चाबहार बंदरगाह का विकास एक महत्वपूर्ण परियोजना है, लेकिन कुछ मौजूदा चुनौतियों के कारण इसकी प्रगति अनुमान से धीमी रही है।
  • 7,200 किलोमीटर लंबा, चाबहार बंदरगाह ओमान की खाड़ी पर स्थित ईरान का एकमात्र समुद्री बंदरगाह है।
  • यह सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत के चाबहार शहर में स्थित है।
  • चाबहार बंदरगाह में मूलतः दो अलग-अलग बंदरगाह शामिल हैं जिन्हें ‘शाहिद कलंतरी’ और ‘शाहिद बेहेश्ती’ के रूप में जाना जाता है।
  • शाहिद बेहेश्ती बंदरगाह के परिचालन का कार्य, भारतीय फर्म ‘इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड(IPGL) के पास है।
  • शाहिद बेहेश्टी बंदरगाह को चार चरणों में विकसित किया जा रहा है। सभी 4 चरणों के पूरा होने पर बंदरगाह की क्षमता 82 मिलियन टन प्रति वर्ष हो जाएगी।
  • यह बंदरगाह ऊर्जा संपन्न फारस की खाड़ी के देशों के दक्षिणी तट तक पहुंच प्रदान करता है और पाकिस्तान को बायपास करता है।
  • गुजरात में कांडला बंदरगाह 550 समुद्री मील पर निकटतम बंदरगाह है, जबकि चाबहार और मुंबई के बीच की दूरी 786 समुद्री मील है।

भारत के लिए चाबहार बंदरगाह का महत्व:

भूराजनीतिक महत्व:

  • चाबहार बंदरगाह रणनीतिक तौर पर दक्षिण एशिया, मध्य एशिया और मध्य पूर्व के चौराहे पर स्थित है जो भारत को फारस की खाड़ी, अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरोप तक सीधी समुद्री पहुंच प्रदान कर सकता है।
  • यह बंदरगाह मध्य एशियाई देशों और अफगानिस्तान के बीच कार्गो यातायात के लिए होर्मुज जलडमरूमध्य से एक वैकल्पिक मार्ग भी प्रदान करता है।

आईएनएसटीसी का प्रवेश द्वार:

  • चाबहार बंदरगाह भारत की ईरान तक पहुंच को बढ़ावा देगा, जो अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (आईएनएसटीसी) का प्रमुख प्रवेश द्वार है, जिसमें भारत, रूस, ईरान, यूरोप और मध्य एशिया के बीच समुद्री, रेल और सड़क मार्ग हैं।

चीन का मुकाबला:

  • चाबहार बंदरगाह अरब सागर में चीनी उपस्थिति का मुकाबला करने में भारत के लिए फायदेमंद है, जिसे चीन ग्वादर बंदरगाह विकसित करने में पाकिस्तान की मदद करके सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है।
  • ग्वादर बंदरगाह चाबहार से सड़क मार्ग से 400 किमी और समुद्र मार्ग से 100 किमी से भी कम दूरी पर है।

व्यापारिक लाभ:

  • चाबहार बंदरगाह के चालू होने से भारत में लौह अयस्क, चीनी और चावल के आयात में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
  • भारत में तेल की आयात लागत में भी काफी गिरावट देखने को मिलेगी।

भारत-ईरान संबंध:

राजनीतिक संबंध:

  • भारत और ईरान ने 1950 में एक मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए। दोनों देशों ने संयुक्त समिति बैठक (JCM), विदेश कार्यालय सहित विभिन्न स्तरों पर कई द्विपक्षीय परामर्श तंत्र स्थापित किए हैं।
  • भारत और ईरान के पास विभिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग को सुविधाजनक बनाने के लिए संयुक्त कार्य समूह भी हैं।

आर्थिक संबंध:

  • वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान भारत-ईरान द्विपक्षीय व्यापार 21.76% की वृद्धि दर्ज करते हुए 2.33 बिलियन डॉलर था।
  • भारत और ईरान द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने के लिए भुगतान के अपने चैनलों में विविधता लाने की भी कोशिश कर रहे हैं।

ऊर्जा सहयोग:

  •  भारत लगातार ईरानी तेल के शीर्ष आयातकों में से एक रहा है, हालाँकि ईरान पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण इस रिश्ते को चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।

क्षेत्रीय स्थिरता:

  • भारत और ईरान क्षेत्र की स्थिरता, विशेषकर अफगानिस्तान के संदर्भ में, चिंताओं और हितों को साझा करते हैं।
  • दोनों देशों ने आम सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए विभिन्न पहलों पर सहयोग किया है।

भारत के लिए चुनौतियां:

भू-राजनीतिक चुनौतियाँ:

  • मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक परिदृश्य जटिल रहा है, और दोनों देशों को अपने क्षेत्रीय हितों को संतुलित करने के लिए सावधानीपूर्वक नेविगेट करने की आवश्यकता है।

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध:

  • वर्ष 2017 में डोनाल्ड ट्रम्प (पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति) ने भारत-ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी थी।
  • ईरान को विशेष रूप से अपने परमाणु कार्यक्रम के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा है।
  • इन प्रतिबंधों से भारत और ईरान के बीच आर्थिक संबंधों पर असर पड़ा है, खासकर ऊर्जा क्षेत्र में।
  • ईरान से तेल आयात करने की भारत की क्षमता प्रभावित हुई है, जिससे उनके ऊर्जा सहयोग में अनिश्चितता पैदा हो गई है।

सुरक्षा संबंधी चुनौतियां:

  • अफ़ग़ानिस्तान में अस्थिर परिस्थितियों सहित क्षेत्र की सुरक्षा स्थिति का भारत और ईरान दोनों पर प्रभाव पड़ता है।
  • क्षेत्र में तनाव बढ़ने पर भारत ने चिंता व्यक्त की है। इसने चिंता के मुद्दों पर ईरान के साथ राजनयिक बातचीत बनाए रखी है, जैसे यमन के हौथी विद्रोहियों द्वारा भारत से जुड़े जहाजों पर हमले, जिनके बारे में माना जाता है कि उनका संबंध ईरान से है।

बाहरी शक्तियों का प्रभाव:

  • भारत और ईरान दोनों के बाहरी खिलाड़ियों के साथ संबंध हैं जो एक-दूसरे के हितों के अनुरूप नहीं हो सकते हैं।
  • क्षेत्र में बाहरी शक्तियों का प्रभाव उनकी द्विपक्षीय गतिशीलता को जटिल बना सकता है और आपसी सहयोग के लिए चुनौतियाँ पैदा कर सकता है।
  • चीन मध्य एशिया और उसके बाज़ारों में, जिसमें उसकी बेल्ट और रोड पहल भी शामिल है, गहरी जड़ें जमा चुका है।

परमाणु समझौते की अनिश्चितताएँ:

  • ईरान परमाणु समझौते (जेसीपीओए) से जुड़ी अनिश्चितताएँ और ईरान के परमाणु कार्यक्रम के प्रति अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण में बदलाव की संभावना भारत और ईरान के बीच राजनयिक और आर्थिक संबंधों को प्रभावित कर सकती है।

आगे की राह:

  • दक्षिण एशिया तक सीमित न रहकर भारत को अपनी पहले पड़ोस की नीति के तहत ईरान और अफगानिस्तान में अपनी पहुंच सुनिश्चित ही होगी। तभी यह न केवल व्यापार और ऊर्जा सुरक्षा में ईरान से लाभ हासिल का सकेगा, बल्कि वैश्विक महाशक्ति बनने की भारतीय आकांक्षाओं की पूर्ति में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
  • भारत को ईरान और अमेरिका के संबंधों में संतुलन स्थापित करना होगा ताकि भू-राजनीतिक हितों को साधा जा सके।

निष्कर्ष:

यह अनुबंध भारत की कूटनीतिक परिपक्वता, जटिल वैश्विक परिदृश्य पर बातचीत करने की क्षमता का संकेत है जो

2003 में तत्कालीन राष्ट्रपति सैयद मोहम्मद खातमी की दिल्ली यात्रा के दौरान भारत-ईरान संबंधों के लिए एक ऐतिहासिक क्षण के रूप में देखा गया था। हालांकि अमेरिका, चीन और तालिबान के हस्तक्षेप ने भारत और ईरान के समन्वय को प्रभावित करने का प्रयत्न किया है लेकिन इसके बावजूद चाबहार के रणनीतिक महत्व ने दोनों देशों को पुन: एक साथ जोड़ने का कार्य किया है।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

भारत के लिए चाबहार बंदरगाह का महत्त्व क्या है? इससे संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिए आगे की राह पर चर्चा कीजिए।